रुड़की: उधार की सांसें लेकर सड़कों पर ई रिक्शा चलाने को मजबूर एक बुजुर्ग को देख हर कोई हैरत में है. यह बुजुर्ग अपने घर के साथ अपनी जिंदगी का पहिया चलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जिनके दोनों फेफड़े खराब हो चुके हैं, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी है. वे अपनी जिंदगी का पहिया चलाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर मेहनत कर रहे हैं.

रुड़की शहर में दौड़ती हजारों ई रिक्शाओं के बीच (उधार की सांस) यानी ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर ई रिक्शा चलाते 62 साल के गुल मोहसिन अलग ही नजर आ जाते हैं. हालांकि, गुल मोहसिन को देखकर हर किसी के मन में सवाल तो उठना लाजिमी है. अलबत्ता आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसे दूसरों का दर्द जानने की फुर्सत है.

मोहसिन को रोजाना 400 से 500 रुपए तक की आमदनी में अपना और पत्नी के खाने-पीने के खर्च के अलावा ई-रिक्शा की किस्त भी निकालना होती है. सिलेंडर और दवाई का इंतजाम करना रोटी से भी ज्यादा जरूरी है. फिर भी अपनी हिम्मत नहीं हारे हैं.

बता दें कि रुड़की के पश्चिमी अंबर तालाब मोहल्ला निवासी गुल मोहसिन पहले टेलर का काम करते थे. कपड़े सिल कर अपने परिवार और बच्चों को पालते थे, लेकिन साल 2009 में उन्हें हार्ट अटैक आ गया. इसके बाद कोरोना काल से तो उनकी जिंदगी परेशानियों से घिरती चली गई. दरअसल, गुल मोहसिन के दोनों फेफड़ों ने जवाब दे दिया और इसी कारण पैर से सिलाई मशीन चलाना तो दूर उनके लिए पैदल चलना भी मुश्किल हो गया.

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *