रिस्पना नदी में पिछले दो-ढाई दशक में राजपुर कठबंगला क्षेत्र से मोथरोवाला तक कई हजार अवैध निर्माण हो चुके हैं। दोनों और बस्तियां बसा दिए जाने के साथ ही व्यवसायिक व सरकारी निर्माण भी खूब हुए हैं। साल-2018 में हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए रिस्पना का गला घोंटने वाली अवैध बस्तियों को ध्वस्तीकरण से बचाने के लिए तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार आनन-फानन में अध्यादेश ले आई थी। इसके जरिए साल-2016 तक की अवैध बस्तियों को सुरक्षित कर लिया गया। यह अलग बात है कि इसके कुछ ही समय बाद त्रिवेंद्र सरकार ने रिस्पना को पुनर्जीवित करने के नाम पर पौधरोपण अभियान का ढोल भी खूब पीटा था, लेकिन यह अभियान सिर्फ अखबारों की सुर्खियां और ‘ड्रामा’ भर ही साबित हुआ। न रिस्पना पुनर्जीवित हुई और न त्रिवेंद्र सरकार ने तब रिस्पना का ‘गला घोटने वाला अध्यादेश’ ही वापस लिया।

 

सुसवा नदी में मिलन के जरिए गंगा की सहायक रिस्पना नदी का वर्तमान में हाल यह है कि जहां 1974 में हरिद्वार रोड पर 147 मीटर लंबे पुल निर्माण के वक्त उसका प्रवाह (बहाव) क्षेत्र 124 मीटर चौड़ा था, वहीं अब यह विभिन्न स्थानों पर सिकुड़ कर मात्र 15-20 मीटर से लेकर अधिकतम 40-50 मीटर तक ही रह गया है। इसमें भी कहीं नदी के बीचो-बीच होटल और व्यवसायिक कॉपलेक्स बनाए जा रहे, तो कहीं नदी को व्यवसायिक वाहनों का अड्डा बना दिया गया है। सरकार ने शहरभर का सीवर भी इसी नदी में बनाए होल में डाल दिया है।

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